‘‘एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमें, और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं।’’
बस्ती । मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी को उनके 38 वें पुण्य तिथि पर प्रेमचन्द साहित्य जन कल्याण संस्थान द्वारा याद किया गया। मंगलवार को कलेक्टेªट परिसर में फिराक गोरखपुरी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुये फिराक गोरखपुरी के शिष्य ओम प्रकाश नाथ मिश्र ने छात्र जीवन के संस्मरण को साझा करते हुये कहा कि गोरखपुर जनपद के गोला तहसील के बनवारपार गांव में एक कायस्थ परिवार में जन्मे रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी अपने बाल्यकाल में से काफी प्रतिभाशाली थे। अध्ययन के दौरान उन्होंने अंग्रेजी और उर्दू भाषा में महारत हासिल कर ली थी। स्नातक के बाद उनका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए भी हो गया था। परंतु उस समय देश-प्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर उन्होंने सरकारी नौकरी को छोड़ स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। और जंगे आजादी में पूरी शिद्दत से भाग लेने लगे।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि ‘‘एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमें, और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं।’’ जैसी शायरी के माध्यम से फिराक साहब आजम भी लोगों के दिलों में जगह बनाये हुये हैं। फिराक साहब ने उर्दू साहित्य अपनी एक खास जगह बनाई वे उर्दू के ऐसे महान शायर थे जिन्होंने उर्दू गजल के क्लासिक मिजाज को नई ऊंचाई दी। उन्होंने हर विधा में लिखा। उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण आदि अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया और अंत में 3 मार्च 1982 उनका निधन हो गया।साहित्यकार बटुकनाथ शुक्ल ने अध्यक्षता करते हुये कहा कि ‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं’ मौत का भी इलाज हो शायद , जिंदगी का कोई इलाज नहीं जैसी शायरी को शव्द देने वाले फिराक गोरखपुरी एक शिक्षक के रूप में प्रतिष्ठित रहे। पुण्य तिथि पर फिराक गोरखपुरी को नमन् करने वालों में डा. पंकज कुमार सोनी, परमात्मा प्रसाद निर्दोष, रामचन्द्र राजा, डा. राजेन्द्र सिंह राही, अजमत अली सिद्दीकी, जगदीश प्रसाद पाण्डेय, ब्रम्हानन्द पाण्डेय, दीनानाथ यादव, शव्वीर अहमद, जगदीश प्रसाद आदि शामिल रहे।
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