(जितेंद्र पाठक) संतकबीरनगर। शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान, ज्ञान का उद्देश्य है संस्कार, और संस्कार से ही निकलता है मानवता का प्रकाश पुंज। बिना ज्ञान, संस्कार और शैक्षणिक प्रकाश पुंज के समाज के उत्थान की परिकल्पना बेईमानी होती है। आज के परिवेश मे जब समाज मे शैक्षणिक संस्थान की स्थापना के समय ही संबंधित संस्थान अपने बाइलाज मे की गयी उद्घोषणा के समय ही शिक्षा, ज्ञान और समाज के उत्थान का लिखित घोषणा पत्र भी तैयार करते हैं। लेकिन धरातल पर इन्हीं विद्या मंदिरों के नाम पर व्यवसायिक धंधा करने मे पीछे नही हटते। शैक्षणिक संस्थानों मे अध्ययनरत नौनिहालों और उनके अभिभावकों से ही समाज का निर्माण होता है।
सवाल यह है कि कॅरोना जैसी वैश्विक महामारी के इस दौर मे सूफी संत कबीर के सीने पर खडीं शैक्षणिक संस्थानों की बुलंद इमारतें अपनी स्थापना के बुनियाद पर कितना खरा उतर रही हैं? आज कॅरोना के चलते हुए लाकडाउन मे समाज आर्थिक विपन्नता के मुहाने पर खड़ा है। शिक्षा ग्रहण करने वाले उनके पाल्य क्षण क्षण बदलते शैक्षणिक पाठ्यक्रमों को आत्मसात् करने के लिए उद्वेलित हैं तो वहीं अभिभावक अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को लेकर चिंतित हैं। हालात को महसूस करके समाज की मदद करने की बजाय खुद को वातानुकूलित कमरों मे कैद करने वाले कथित शैक्षणिक महादूत कहलाना पसंद करने वाले लोग आखिर अपने ही बाइलाज से कन्नी क्यों काट रहे हैं? माॅ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण करके मां लक्ष्मी का आह्वान करने वाले शिक्षा के सौदागरों ने आखिर समाज के सामने खड़ी 'कोरोना' जैसी विकट परिस्थिति मे ज्ञान का कितना प्रकाश प्रज्जवलित किया?
कबीर की धरती पर स्थित सूर्या इण्टरनेशनल एकेडमी और जिले के दक्षिणान्चल कि शोभा बढ़ाने वाले एसआर इण्टरनेशनल एकेडमी ने पहले तो तीन माह का शैक्षणिक शुल्क और वाहन माफ करके अपने स्थापना के उद्देश्य को न सिर्फ पूरा किया बल्कि चुनौतियों से जूझते हुए आॅनलाइन स्टडी प्रक्रिया शुरू करके अपने नौनिहालों के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया है। इस संबंध मे जब सूर्या इण्टरनेशनल एकेडमी खलीलाबाद के मैनेजिंग डायरेक्टर डा0 उदय प्रताप चतुर्वेदी और एसआर इण्टरनेशनल एकेडमी के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश चतुर्वेदी से वार्ता हुई तो दोनों युवा स्तंभों ने बताया कि उनके संस्थान अपनी बुनियाद के उद्देश्य से अपने नौनिहालों को भी परिपूर्ण करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि संस्थान मे बच्चे ज्ञान और संस्कार ही सीखने आते हैं। यदि हम अपने ही वादे को दरकिनार करके बच्चों मे ज्ञान बांटने का प्रयास करेंगे तो इस धरती पर उग रही नई पौध झुलसने लगेगी। ऐसे मे हमे बिना किसी की प्रतिस्पर्धा के अपनी नैतिक जिम्मेदारियों का पालन करते हुए समाज और समाज के भविष्य के उत्थान के लिए कार्य करते रहना होगा। जिले के गांवों से लेकर कस्बों मे इन दिनों व्याप्त शैक्षणिक कारोबार की परिचर्चा के बीच सूर्या इण्टरनेशनल एकेडमी और एसआर इण्टरनेशनल एकेडमी की परिकल्पना अभिभावकों को खूब रास आ रही है। 
राकेश चतुर्वेदी
डा0 उदय प्रताप चतुर्वेदी
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