रावण जैसा बुरा कर्म मत करो वरना विनाश अवश्यंभावी है- बाबा उमाकांत जी महाराज

दशहरा पर्व पर बाबा उमाकान्त जी की प्रार्थना- रावण जैसे बुरे कर्म - शराब, मांस, चरित्रहीनता मत करो वरना विनाश अवश्यंभावी है
रावण का तो फिर भी इतिहास में नाम है लेकिन बुरे कर्म करोगे तो आपका कोई नामलेवा नहीं रह जाएगा

लोगो का खानपान, चालचलन सही करके चौरासी और नरक की पीड़ा से बचने का रास्ता बताने वाले धरती पर मौजूद प्रकट संत बाबा उमाकांत जी महाराज ने 15 अक्टूबर 2021 को जयपुर में दशहरा के पर्व पर दिए संदेश में बताया कि रावण ने अन्याय, अत्याचार किया तब उसको राम ने मारा नहीं तो उसके जैसा विद्वान कोई था ही नहीं और न अब है। जानकार इतना था कि कहता था कि जमीन से स्वर्ग तक सीढ़ी लगा दूंगा और सीढ़ी और चढ़कर के लोगों को स्वर्ग पहुंचा दूंगा।
रावण की तीन बुराइयों- शराब, मांस, चरित्रहीनता की वजह से उसका विनाश हुआ
लेकिन तीन बुराई उसके अंदर आ गई थी- मांस खाता, शराब पीता और दूसरे की माँ-बहन को गलत नजर से देखता था। इसीलिए उसको राम ने मारा, उसका विनाश हुआ। उस समय तो एक रावण था अब तो रावण जैसे कर्म करने वाले बहुत रावण हो गए। तो इनको कौन बचा पाएगा? इसलिए दशहरे के पर्व पर इनको यह संदेश देने की जरूरत है कि रावण जैसा कृत्य मत करो नहीं तो तुम्हारा भी विनाश होगा। रावण का तो इतिहास में नाम भी आया लेकिन तुम्हारा कोई नाम लेवा नहीं रहेगा।
जीवो की रक्षा के लिए समय के संत फैलाये रहते हैं अपनी दया की धार
जब महाभारत का समय आ गया तब कृष्ण ने प्रार्थना किया उस समय के संत सुपच जी से कि आप अब अपनी दया की धार इधर से हटाइए। दुष्टों का संहार करने के लिए मैं आया हूं। अब आप इसमें मेरी मदद कीजिये। संतों का काम दया का ही होता है। दया की धार ही उनमें रहती हैं। अवतारी शक्तियों का काम क्या होता है? दुष्टों का संहार और सज्जनों की रक्षा, अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना करना। जैसे राम ने किया था विजयदशमी के दिन। राम बहुत याद किए जाते हैं। कृष्ण भगवान के गुरु संदीपनी थे लेकिन उनके आध्यात्मिक गुरु उस समय के संत सुपच थे। कृष्ण भगवान ने उनसे प्रार्थना किया था कि आप अपनी दया की धार को समेटो, नहीं तो इन दुष्टों का संहार नहीं हो पाएगा तो सुपच जी ने दया की धार को छोड़ना उधर से बंद कर दिया।
अवतारी शक्तियां पहले समझाती हैं, नहीं मानने पर संहार कर देती हैं
जितने भी आए, पहले समझाते हैं। राम-कृष्ण सबने पहले समझाया। कहा मान जाओ कौरवों, पांडवों का भी हक़ होता है, दे दो। लेकिन जब नहीं माने, कहा कि सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं देंगे तब मजबूरन महाभारत कराना पड़ा। जब इनकी प्रार्थना पर सुपच जी ने दया की धार को खींचा उधर से तब इनका संहार करा पाए थे। जैसे बाली ने राम से प्रार्थना की थी की
मैं बैरी सुग्रीव पियारा,
अवगुण कवन नाथ मोहि मारा।

जब बाली ने अन्याय, अत्याचार किया तब उसको राम ने मारा था। रावण को भी अन्याय, अत्याचार करने की वजह से ही राम ने मारा। इसलिए दशहरे के दिन सबको बताओ-समझाओ कि रावण जैसा बुरा कर्म मत करो वरना विनाश अवश्यंभावी है।

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